नमस्कार दोस्तों, इंडियन यूनिटी क्लब में आपका स्वागत है। कहानियाँ मानव जीवन में हमेशा से आवश्यक एवं मनोरंजन का साधन रही हैं। कहानियाँ ना हो तो मानव जीवन की कल्पना करना बहुत कठिन हैं। प्रेरणा दायक बाल कहानियाँ बच्चों में, छात्रों में काफी लोकप्रिय होती हैं, और बहुत जरुरी भी होती हैं। इस पोस्ट में हम प्रस्तुत कर रहें हैं एक शिक्षाप्रद कहानी जिसका शीर्षक है - "लालची राजा की बेबसी"।
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कहानी: लालची राजा की बेबसी
बहुत पहले समय की बात है एक राज्य सागरगढ़ था। उस राज्य के राजा सागरसिंह थे। राजा सागरसिंह थे बड़े ही न्यायप्रिय पर उस से ज्यादा वह लालची भी थे। राजा का राज्य सुख समृद्धि से भरा था।उसकी एक बहुत ही गुणी और सुंदर पुत्री थी। राजा सागरसिंह अपनी पुत्री को बहुत प्यार करते थे। पुत्री को छोड़कर और कोई दूसरी वस्तु राजा को संसार में प्यारी थी तो वह था सोना हीरे जेवरात। वह रात में सोते–सोते भी सोना हीरे जेवरात इकट्ठा करने के सपने देखा करते थे। राजा ने अपने सोने हीरे जेवरात को रखने के लिए विशेष तहखाना बना रखा था। जिसे वह नित्यदिन देख कर दिन का अधिक से अधिक समय वहां गुजरा करते थे।
एक दिन की बात है राजा सागरसिंह अपने खजाने में बैठकर सोने की अशर्फियां गिन रहे थे। तभी वहां स्वर्ग से देव कुबेर उनके सामने प्रकट हुए। राजा ने देव कुबेर को प्रणाम किया। देव ने राजा का खजानों से भरा तहखाना देख कहा -“हे राजन ! तुम बहुत धनी और चतुर हो।” राजा ने मुंह लटकाकर उत्तर दिया – "मैं धनी कहां हूं स्वामी मेरे पास तो यह बहुत थोड़ा सा ही खजाना है। दूसरे राज्य के राजाओं के पास मुझसे ज्यादा ही धन है।" देव कुबेर ने कहा – “तुम्हारे पास इतना सोना हीरे जेवरात है क्या इतने से भी संतोष नहीं है तुम्हे और कितना सोना चाहिए।”
राजा ने कहा – “हे देव मैं तो चाहता हूं कि मैं जिस वस्तु को हाथ से स्पर्श करूं वही सोने की हो जाए।” देव कुबेर हंसे और बोले – "अच्छी बात है ! कल सवेरे से तुम जिस वस्तु को छूलोगे वह सोने की हो जाएगी। पर याद रहे सोच समझकर इन शक्तियों का उपयोग करना।" राजा की खुशी का ठिकाना ही नही रहा उसने देव को प्रणाम किया और देव अंतरध्यान हो गए। उस रात में राजा को नींद ही नहीं आई, वह सुबह होने का इंतज़ार करता रहा।
इंतज़ार की घड़ियां जब ख़त्म हुई और जब सुबह हुआ उसने अपनी शक्तियां अजमाने के लिए उसने एक लकड़ी की कुर्सी पर हाथ रखा वह सोने की हो गई। खिड़की के पर्दों को छुआ वह सोने की बन गई। राजा सागरसिंह खुशी के मारे उछलने और नाचने लगा, वह पागलों की भांति दौड़ता हुआ अपने बगीचे में गया और पेड़ों को छूने लगा फूल, पत्ते, डालियाँ, गमले छुए सब सोने के हो गए। राजमहल का बगीचा सोने से चमकने लगा। राजा के खुशी का ठिकाना न रहा अब उसके पास दुनिया सब से ज्यादा खजाना था।
दौड़ते-उछलते में राजा थक गया। उन्हें अभी तक यह पता ही नहीं लगा था कि उनके कपड़े भी सोने के होकर बहुत भारी हो गए हैं। वह प्यासे थे और भूख से बेहाल हो गए थे। अपने बगीचे से अपने राजमहल लौटकर एक सोने की कुर्सी पर बैठ गए। उन्होंने अपने नौकर भोजन और पानी तुरंत लाने कहा। नौकर ने पानी और खाना लाकर राजा के सामने रख दिया। लेकिन जैसे ही राजा ने भोजन को हाथ लगाया वह भोजन सोने का हो गया। उसने पानी पीने के लिए गिलास उठाया तो गिलास और पानी सोना हो गए। सागरसिंह के सामने सोने की रोटियां, सोने के चावल, सोने के आलू आदि रखे थे और वह भूखा-प्यासा था। उन्हें अब कुछ समझ नही आ रहा था। वह बहुत है बेबस और लाचार हो गए।
राजा अपनी इस बेबस हालात पर रो पड़ा। उसी समय उनकी पुत्री खेलते हुए वहां आई। अपने पिता को रोते हुए देखकर पिता की गोद में चढ़ कर उसके आंसू पहुंचने लगी। राजा ने पुत्री को अपनी गले से लगाने के लिए छुआ, और उनकी पुत्री सोने में बदल गयी। राजा अपना सर पीट-पीट कर रोने लगा और वह देव को याद कर विनती करने लगा, दया की भीख मांगने लगा। देव कुबेर को राजा पर दया आ गई वो फिर उनके सामने प्रकट हुए उन्हें देखते ही सागरसिंह उनके पैरों पर गिर पड़े और प्रार्थना करने लगे, हे देव आप अपना वरदान वापस ले लीजिए।”
देवता ने पूछा – “सागरसिंह अब तुम्हें सोना नहीं चाहिए। अब बताओ एक गिलास पानी मूल्यवान है या सोना, कपड़ा, रोटी मूल्यवान है या सोना। बेटी चाहिए या सोना।” सागरसिंह ने हाथ जोड़कर कहा – “मुझे सोना नहीं चाहिए मैं जान गया हूं कि मनुष्य को सोना नहीं चाहिए। सोने के बिना मनुष्य का कोई काम नहीं रुकता एक गिलास पानी और एक टुकड़े रोटी के बिना मनुष्य का काम नहीं चल सकता। पुत्री के बिना इस जीवन का कोई काम नही। अब सोने का लोभ नहीं करूंगा। हे प्रभु मुझपे दया करो। देव ने एक कटोरे में मंत्र जल दिया और कहा – “इसे सब पर छिड़क दो।”
सागरसिंह ने वह जल अपनी बेटी पर छिड़का और पहले जैसे हो गयी अपनी पुत्री को वापस पाकर राजा की ख़ुशी का ठिकाना नही रहा। देव कुबेर ने राजा से शक्तियां भी वापस ले ली थी। राजा ने उनका धन्यवाद किया और देव अंतरध्यान हो गए। राजा ने पुत्री को यह सब बात बताते हुए अभिमंत्रित जल सभी सोने के वस्तु में छिड़कने लगे और सभी वस्तु अपने पूर्व अवस्था मे वापस आ गए। अब राजा ने लालच करना छोड़ दिया और अपने खजाने का सही उपयोग करने लगे।
इस कहानी से सीख
- लालच बुरी बला है।
- मेहनत से धन कमायें।
- धन का सही उपयोग करना सीखो।
- लालच के कारण अपनों को खोने का डर है।
- जितनी वस्तु पास है, उसी से संतोष करना चाहिए।
धन्यवाद!!!
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