नमस्कार दोस्तों, इंडियन यूनिटी क्लब में आपका स्वागत है। कहानियाँ मानव जीवन में हमेशा से आवश्यक एवं मनोरंजन का साधन रही हैं। कहानियाँ ना हो तो मानव जीवन की कल्पना करना बहुत कठिन हैं। प्रेरणा दायक बाल कहानियाँ बच्चों में, छात्रों में काफी लोकप्रिय होती हैं, और बहुत जरुरी भी होती हैं। इस पोस्ट में हम प्रस्तुत कर रहें हैं एक शिक्षाप्रद कहानी जिसका शीर्षक है - "लालच के लिए की गई मूर्खता"।
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कहानी: लालच के लिए की गई मूर्खता
पुरनपारा नामक एक गांव था। वहां बहुत ही विशाल मेला लगा हुआ था। मेले में तरह-तरह के दुकान और चौपाटी आये थे। उन्ही में एक बुधवा नाम के आदमी ने कांच और कांच से बने सामान की छोटी सी दुकान लगा रखी थी। वह ज्यादा पढ़ा-लिखा नही था। दुकान में रंग-बिरंगे अलग-अलग कांच के बने हुए सुंदर आभूषण और कई तरह के कांच के टुकड़े सजे हुए थे। मेले में आए बहुत से लोग अलग-अलग दुकानों पर सामान देख रहे थे और खरीद रहे थे। मेले में शिवपाल नाम का एक जौहरी भी आया था।
शिवपाल मेला घूमते-घूमते बुधवा के दुकान पर पंहुचा और कांच के सामान देखने लगा, अचानक उसकी नजर उस दुकान में रखे हुए एक कांच के टुकड़े पर पड़ी जो सबसे ज्यादा चमक रही थी। जौहरी ने देखते ही समझ लिया कि वह कांच का टुकड़ा नही बल्कि एक अति मूल्यवान हीरा है। उसने बुधवा से पूछा ”यह चमकीला कांच का टुकड़ा कितने का है?” बुधवा ने बोला की “यह कांच पचास रूपए का है।” जौहरी ने भांप लिया की बुधवा को नही पता की वह कांच नही, हीरा है। जौहरी ने लालच किया और मोलभाव करना शुरू किया और कहा तीस रुपए मे दे सकते हो की नही? बुधवा ने चालीस रूपए कहा।
जौहरी ने सोचा थोड़ी देर घूम-फिर कर आता हूं, हो सकता है वापस आने पर इसका मन बदल जाए। थोड़ी देर बाद जब शिवपाल वापस बुधवा की दुकान पर आया तो उसने देखा कि वह कांच का टुकड़ा जो हीरा था, वह दुकान में नही था। यह देख उस जौहरी को गुस्सा आ गया और उसने तैश मे बुधवा से पूछा ”वह कांच का टुकड़ा कहां गया।” बुधवा ने बोला बोला ”वह तो मैंने सौ रुपए में बेच दिया।” मुझे उसके दुगने दाम दे कर एक सज्जन व्यक्ति ने ले लिया।
शिवपाल ने झुंझला कर कहा ”तुम बहुत बड़े मुर्ख हो जो यह नही जानते थे की वह कांच नहीं, बल्कि बहुत कीमती हीरा था, जिसकी कीमत करोड़ों रुपए में थी।” बुधवा बोला “साहब मूर्ख मैं नहीं, मूर्ख आप हैं, जब आपको पता था कि वह कांच का टुकड़ा बहुत कीमती है फिर भी आपने उसका मोलभाव किया और तीस रुपए पर अड़े रहे, आप यदि लालच और मोलभाव के चक्कर में ना पड़ कर चालीस रूपए के भाव मे मान गए होते तो वह कीमती हीरा आपके पास होता।” यह सुनकर शिवपाल को अपनी मूर्खता और लालच पर बहुत पछतावा हुआ और उसने बुधवा से अपनी गलती के लिए माफ़ी मांगी।
इस कहानी से सीख
- लालची व्यक्ति होना हमेशा हानिकारक होता है।
- समय किसी की प्रतीक्षा नहीं करता।
- यदि आप जानते हैं कि किसी भी चीज की वास्तविक कीमत उसे न छिपायें।
- खुद की गलती के लिए दूसरों को जिम्मेदार ना ठहरयें।
- अपनी मुर्खता से बड़ी किसी और की मुर्खता नही।
धन्यवाद!!!
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