कहानी: अंधेर नगरी चौपट राजा


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कहानी: अंधेर नगरी चौपट राजा

यह उस समय की बात है जब राजा का कहा हर शब्द न्याय होता था। एक नगरी थी नाम था अंधेर नगरी और वहां के राजा का नाम था चौपट राजा। उस नगरी में हर चीज टके शेर मिलती थी इसलिए नाम था “अंधेर नगरी चौपट राजा टके सेर भाजी टके सेर खाजा”। यह राज्य मूर्खता के साथ-साथ मंद बुद्धि के लिए प्रसिद्ध था। यहां का राजा बड़ा ही मूर्ख था वह बात-बात पर फांसी की सजा सुनाता था ।

एक बार नगरी में एक मुनि व उनके दो शिष्य आए मुनि ने उन दोनों शिष्यों को भिक्षा लेने के लिए दो दिशाओं में भेज दिया और खुद दुकान पर जाकर नगरी के बारे में पूछने लगे दुकानदार ने बताया कि यह नगरी है अंधेर नगरी और राजा है चौपट राजा और यहां सारी सामग्री टके सेर मिलती है तभी मुनि ने कहा “अंधेर नगरी चौपट राजा टके सेर भाजी टके सेर खाजा”। शाम को जब दोनों शिष्य भिक्षा लेकर मुनि के पास आये तब उन्होंने ने इस नगरी को तुरंत छोड़ कर अन्य नगरी जाने को कहा। इस पर एक शिष्य ने कहा हे मुनिराज यहाँ भिक्षा अच्छी मिलती है व सारी सामग्री टेक शेर मिलता है मै इस नगरी को छोड़ कर कही नहीं जाना चाहता। मुनि ने कहा यह नगरी मुर्खता से भरी है अतः यहाँ रुकना उचित नहीं है। परतु वह शिष्य नहीं माना। मुनि अपने एक शिष्य के साथ नगरी छोड़ जाने लगे जाते-जाते उस शिष्य को कहा मुसीबत में पड़ जाने पर हमें याद करना हम आ जायेंगे ।

एक दिन राजा का दरबार चल रहा था अचानक मनसुख नामक दुकानदार रोता चिल्लाता हुआ वहां आया। राजा ने पुछा क्या हुआ, जो इतना बिलख रहे हो। मनसुख ने आप बीती सुनाई हे महाराज, आज शुबह मेरी बकरी कल्लू बनिए के दीवार में दब के मर गयी। राजा ने कहा तो तुम हमारे पास क्या करने आए हो। मनसुख ने हाथ जोड़ कर कहा मुझे न्याय चाहिए कल्लू बनिए को सजा हो महराज। राजा ने सैनिकों को तुरंत कल्लू बनिए को पकड़ लाने को कहा। कल्लू बनिए ने कहा दीवार सोनोऊ मिस्त्री ने बनाई है उसने दीवार ठीक से नहीं बनाया यह उसकी गलती है। अब राजा ने सोनोऊ को पकड़ लाने के लिए सैनिक दौड़ा दिए। सोनोऊ जब सैनिकों से घिरा, घबराता हुआ दरबार में दाखिल हुआ तो फूट-फूट कर रोने लगा महराज, इसमें मेरी कोई गलती नहीं है। दहाड़ी ने दीवार की मिट्टी में ज्यादा पानी डाला था।

राजा का गुस्सा बढ़ता ही जा रहा था उसने तुरंत दहाड़ी को सैनिको से पकडवा पूछा क्यूँ दहाड़ी दीवार में ज्यादा पानी क्यूँ डाला। दहाड़ी ने कहा महराज सेनापति जी मेरी छोटी मटकी ले गए अतः मुझे बड़ी मटकी से पानी डालना पड़ा इसलिए पानी ज्यादा गयी महराज इसमें मेरी कोई गलती नहीं। राजा का गुस्सा फुट चूका था उन्होंने ने दरबार में सेनापति से पूछा क्यूँ रे सेनापति क्यूँ छोटी मटकी ले गया। सेनापति ने कुछ नहीं कहा तब राजा ने कहा तुम दोषी हो। बस फिर क्या था, मुजरिम को मुर्ख राजा ने ढून्ढ ही लिया था। अब देर करना उचित नहीं होगा इसलिए आनन-फानन में उन्होंने सेनापति को फांसी की सजा सुना दी।

सेनापति था बहुत ही मोटा भरी भरकम सैनकों ने सेनापति को पकड़ कर फंसी घर ले गये और फंसी के नीचे तख्ती पर खड़ा कर दिया। तख्ती वजन से टूट गयी इस प्रकार तख्ती बदली गयी पर चार पांच तख्ती टूटने के बाद सैनिकों ने राजा को कहा तब राजा ने अपने मुर्ख मंत्रियों से सलाह ली , मुर्ख मंत्रियों ने कहा हमें किसी हलके व्यक्ति को सजा देना होगा तभी न्याय हो पायेगा। राजा ने तुरंत हलके व्यक्ति के तलाश में सैनिकों को दौड़ा दिया। सैनिकों ने उस मुनि के शिष्य को ले आये जो उस नगरी में रुक गया था। राजा ने कहा यह भिक्षु वजन में हल्का है और फंसी देने योग्य है इसे फंसी पे लटका दो। शिष्य के पैरों से जमीन खिसक गयी और उसे अपने गुरुदेव की बात न मानने पर बहुत अफ़सोस हुआ परन्तु शिष्य ने धीरज रखा और कहा हे राजन फंसी पर चढ़ने से पहले मै अपने गुरुदेव से मिलना चाहता हूँ ।

राजा ने मुनि को बुलवाया जो दुसरे नगरी चले गए थे। मुनि ने व्यथा सुन शिष्य से अपने साथ नाटक करने कहा। मुनि ने कहा आज का यह शुभ लगन है इस पर मै फंसी चढ़ स्वर्ग प्राप्त करूँगा तुम हट जाओ। शिष्य ने अपना किरदार निभाया और कहा नहीं गुरुदेव आप मुझे मिले मौके को छिनना चाहते है ऐसे मै नहीं होने दे सकता स्वर्ग मुझे देखना है। यह देख सुन राजा आश्चर्य हो गया उसने मुनि से कहा हमें पूरी बात बताओ मुनि ने कहा आज एक अत्यंत दुर्लभ संयोग आया है जो अभी फंसी पे चढ़ेगा उसे स्वर्ग लोक की प्राप्ति होगी। यह सुन राजा स्तब्ध हो गया और उसने सोचा यह मौका मै कैसे छोड़ सकता हूँ । राजा ने कहा की अब हम इस फंसी पे चढ़ेंगे ताकि हम सबसे पहले स्वर्ग जा सके। और यह कहते ही मुर्ख राजा फंसी पे लटक गया और इस प्रकार उस मुर्ख राजा से सभी को मुक्ति मिली और मुनि ने अपने शिष्य की जान बचाई।

इस कहानी से सीख

  • बेवकूफी एक अभिशाप है।
  • गुरुजनों की बातों को महत्व दें।
  • जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार रहें।
  • लालच से बड़ी मुर्खता कुछ भी नहीं।
  • संकट में भी अपना धैर्य न खोएं।

धन्यवाद!!!

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