नमस्कार दोस्तों, इंडियन यूनिटी क्लब में आपका स्वागत है। कहानियाँ मानव जीवन में हमेशा से आवश्यक एवं मनोरंजन का साधन रही हैं। कहानियाँ ना हो तो मानव जीवन की कल्पना करना बहुत कठिन हैं। प्रेरणा दायक बाल कहानियाँ बच्चों में, छात्रों में काफी लोकप्रिय होती हैं, और बहुत जरुरी भी होती हैं। इस पोस्ट में हम प्रस्तुत कर रहें हैं एक शिक्षाप्रद कहानी जिसका शीर्षक है - "लालच में किए गए सेवा का फल"।
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कहानी: लालच में किए गए सेवा का फल
सोमपुर नाम के गाँव में एक सज्जन व्यक्ति रहते थे, उनका नाम लाला रामदास था। अपनी मेहनत, ईमानदारी और लगन से लाला रामदास ने खूब ख्याति और धन-दौलत एकत्रित कर ली थी। लाला जी की पत्नी का नाम सुमति था। इनके परिवार में दो बेटे थे। दोनों बेटों की शादी कर चुके थे। पहले बेटे के तीन संतान और दुसरे बेटे के दो संतान हुए।
एक दिन अचानक लाला जी का स्वर्गवास हो गया। सब पर मानो दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था। उनका क्रिया कर्म कर सब वापस अपने-अपने कामों मे जुट गए। लाला जी की मृत्यु के बाद सब धन-दौलत की मालकिन उनकी पत्नी सुमति हो गयी थी। दोनों बेटे और बहुएं उनकी बढ़ चढ़ कर सेवा करने लगे थे। यह सेवा भाव दिखाने के पीछे दोनों बेटे और बहुओं का स्वार्थ था। आखिर एक दिन बेटों की सेवा भाव और मीठी-मीठी बातों ने अपनी माता को फुसला ही लिया। सुमति ने लाला जी की सारी सम्पति और धन-दौलत दोनों बेटों में बराबर-बराबर बाँट दिया।
संपत्ति के बंटवारा होते ही दोनों बेटों और बहुओं ने अपना घिनौना रंग दिखाना शुरू किया। कोई भी उनको अब ध्यान नही देता था। सब अपनी धुन मे रहते थे। सुमति को कभी खाने को मिलता था और कभी नही तो वह भूखी ही सो जाती थी। अपने बेटों का यह व्यहवार देख वह मन ही मन बहुत रोती थी, पर कर भी क्या सकती थी, वह बूढी और लाचार हो चुकी थी। कुछ महीने ऐसे ही कट गए।
एक दिन सुमति की छोटी बहन उनसे मिलने आयी। उनकी हालत देख वह भी अपने आंसू न रोक पायी। कहाँ तो सब पर राज करने वाले लाला जी की पत्नी थी मगर अब तो उनकी हालत एक भिखारी जैसे हो गयी थी। बहन की हर संभव मदद करने का वादा कर वह वहां से चली गयी। कुछ दिन बाद उनकी बहन वापस आई उनके हाथ में एक बैग था। वह बैग उन्होंने इस तरह से पकड़ रखा था कि घर के हर सदस्य की नज़र उस पर पड़े और उन्होंने सबके सामने वह बैग ले जा कर अपनी बहन सुमति को थमा दिया और बोली “दीदी, जो गहनों हीरे जेवरात आप ने मेरे पास रखवाई थी, यह वही है, अब आप इसे अपने पास रखो आपके काम आएंगे,” और यह कह वह वहां से चली गयी।
सुमति ने बैग उठाया और अपने कमरे में चली गयी। दोनों बेटों और बहुओं ने यह सुन काना फूसी चालू कर दी अब उनके पास से यह बैग कैसे हासिल किया जाए। दोनों बहुओं ने सुझाव रखा की माता जी की सेवा कर फिर से उनका विश्वास जीता जाए। फिर क्या था, अब उस बैग को हासिल करने के चक्कर में सब ने दोबारा से माता जी की सेवा करनी शुरू कर दी। दिन रात सुमति के लिए अच्छे-अच्छे पकवान बनाने लगे और फल इत्यादि आने लगे। दिन में दस बार सब पूछते “माँ आपको कुछ और चाहिए तो नही।” लेकिन इस बार सुमति ने पक्का मन बना लिया था कि इन गहनों में से किसी को भी कुछ नहीं देना है।
महीनों, साल गुजर गए और सब उस गहनों से भरे बैग पर नजर जमा कर माता की सेवा करते रहे। आखिर एक दिन ऐसा आया कि सुमति को लगा कि शायद अब उनका इस संसार से जाने का समय आ गया है। तब उन्होंने ने अपने दोनों बेटों और बहुओं को पास बुलाया और उस बैग में से सारे गहने निकल बराबर-बराबर बाँट दिए, और उनकी मृत्यु हो गयी। दोनों बेटों और बहुओं ने चैन की सांस ली कि चलो बुढ़िया से छुटकारा मिला और साथ में इतने सारे गहने जेवरात भी मिल गए।
क्योंकि, वह गहने कुछ पुराने तरह के थे, इसलिए दोनों बेटों ने सोचा की इन्हे बेच देते है और जो रकम मिलेगी उनसे नए गहने बनवा लेंगे। लेकिन जब सुनार के पास गहने लेकर पहुंचे तो पता चला यह सब तो नकली थे। सब गहने पीतल के थे और उन पर सिर्फ सोने का पानी चढ़ाया हुआ था। दोनों बेटों और बहुओं के चहरे लाल पड़ गए। उन सब ने सोचा क्या हमने इन पीतल के गहनों के लिए ही माँ की इतने साल बेकार में सेवा की। बस फिर क्या था, सब के सब अपना माथा पकड़ बैठ गए। इसके बाद उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ की लालच मे उन्होंने ने जो माता जी के साथ किया वह गलत था यह उनकी सजा थी।
इस कहानी से सीखा
- माता-पिता की सेवा सच्चे मन से करनी चाहिए।
- अपने काम में ईमानदार रहें।
- हमेशा अपने माता-पिता का सम्मान करें।
- अपने माता-पिता पर ज्यादा निर्भर न रहें।
- माता-पिता आपके जीवन के देवता हैं।
धन्यवाद!!!
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