नमस्कार दोस्तों, इंडियन यूनिटी क्लब में आपका स्वागत है। कहानियाँ मानव जीवन में हमेशा से आवश्यक एवं मनोरंजन का साधन रही हैं। कहानियाँ ना हो तो मानव जीवन की कल्पना करना बहुत कठिन हैं। प्रेरणा दायक बाल कहानियाँ बच्चों में, छात्रों में काफी लोकप्रिय होती हैं, और बहुत जरुरी भी होती हैं। इस पोस्ट में हम प्रस्तुत कर रहें हैं एक शिक्षाप्रद कहानी जिसका शीर्षक है - "पिता ने पुत्र से बार-बार पूछा"।
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कहानी: पिता ने पुत्र से बार-बार पूछा
एक बड़े शहर में सागरदास नाम का व्यक्ति रहता था। उसके परिवार में उसकी पत्नी एवं एक पुत्र एवं पुत्री थे। परिवार उच्च मध्यमवर्गीय था। वह अपने परिवार को बहुत प्यार करता था तथा अपने पुत्र एवं पुत्री को किसी भी बात के लिए रोक टोक नहीं करता था। एक बार वह अपने पुत्र एवं पुत्री के साथ छुट्टी के दिन छत में बैठे खेल रहा था तभी छत में अनेक प्रकार के पक्षी जैसे कौवा गौरैया उड़ रहे थे।
पुत्र ने पूछा पिता जी यह क्या है, सागरदास ने जवाब दिया यह कौवा है, पुत्री ने पूछा वह छोटी चीज क्या है, पिता ने जवाब दिया वह गौरैया है। पुत्र ने फिर पूछा यह क्या चीज है, सागरदास ने बताया यह पक्षी है, या आसमान में उड़ते हैं। पुत्री ने फिर पूछा यह क्या है, इस प्रकार सवालों का सिलसिला चलता रहा और सागरदास सारे जवाब बिना झुंझलाए हल्के मन से जवाब दे रहा था।
समय बीतता गया बच्चे बड़े होते गए सागरदास ने अपने पिता होने के सारे फर्ज निभाए और अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा और अच्छी जिंदगी प्रदान की। वह अपने पुत्र और पुत्री से बहुत प्यार करता था। समय के साथ उसने अपने पुत्र की शादी एक अच्छी लड़की से की, एवं पुत्री की शादी एक धनाढ्य परिवार में की। सागरदास अब बूढ़ा हो चला था और सुनाई और दिखाई देने में कमी हो गई थी। उनकी पत्नी भी कुछ समय बाद गुजर गई।
अब सागर दास अपने बेटे एवं बहू के साथ अपने बेटे के बड़े घर में रहते थे। बेटा काम में व्यस्त रहता था, तथा बहू घर के कामों में व्यस्त रहती थी। एक बार छुट्टी का समय था, घर पर कुछ मेहमान आने वाले थे। जब पहला मेहमान आया तब पिताजी ने पूछा कौन आया है बेटा। बेटे ने बताया मामा जी आए हैं तब पिताजी ने पूछा क्या-क्या बातें हो रही है, बेटे ने बताया घर की कुछ बातें हो रही है। मामा जी के जाने के बाद उनकी पुत्री आई, तब सागरदास ने पूछा अब कौन आया है बेटे ने कहा की बहन आई है। उसके जाने के बाद सागर दास ने पूछा अब कौन आया है।
बेटे ने इस बात को सुन झुंझलाहट में कहा अभी कोई नहीं आया है, आप बार-बार क्यों मुझसे ऐसा सवाल पूछ रहे हैं। आप चुपचाप अपने कमरे में क्यों नहीं चले जाते या खुद आकर क्यों नहीं देख लेते। आप मुझे क्यों परेशान कर रहे हैं। इस पर सागरदास ने कहा बेटे जब तुम छोटे थे तब तुम भी मुझसे इस तरह के सवाल पूछा करते थे तब तुम्हें पता नहीं था। तब मैं विनम्रता से तुम्हारी हर बातों पर बिना झुंझलाए तुम्हें सारे जवाब देता था।
मैंने तो केवल आज तुम्हें छुट्टी मिली है, इसलिए तुमसे सिर्फ बात करना चाहता था। इस वजह से बार-बार पूछ रहा हूं, क्या तुम्हारे लिए मेरे पास कुछ भी समय नहीं है। क्या तुम्हें मेरी बातों से इतनी परेशानी होती है, अगर ऐसा है तो मैं कभी तुम्हें परेशान नहीं करूंगा। इस पर उनके बेटे ने कहा मुझे माफ कर दीजिए पिताजी मैं आपको समझ ना सका। मैं काम में व्यस्त होने की वजह से आप पर ध्यान नहीं दे पाया, आज से मैं और मेरी पत्नी आप का पूरा ध्यान रखेंगे। आपकी हर बात मानेंगे मुझे अच्छी जिंदगी देने के लिए आपका धन्यवाद पिताजी यह कहते हुए बेटे ने सागरदास के को गले से लगा दिया।
इस कहानी से सीख
- अपने माता-पिता का सम्मान करें।
- हमेशा अपने माता-पिता और परिवार को समय दें।
- सफल होने के बाद कभी अभिमानी नहीं बनें।
- माता पिता का सहारा बनें।
- परिवार के खुशियों में शामिल रहें।
धन्यवाद!!!
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